Brantford Hindu Charitable Association.
Description
The main mission of the temple is to reflects a synthesis of arts, the ideals of dharma, beliefs, values and the ways of life cherished under Hinduism.
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Dear Devotees, Jai Shree Krishna. We are getting prepared to celebrate our Mandir’s 1st anniversary, India’s Repubic Day and Swami Vivekananda Jayanti. Date: Sunday January 31st Time & location: 4pm to 6pm at Brantford Mandir. “Priti bhoj will be served after the program” Please come with your friends and family and enjoy fun filled eve at Mandir with kids singing and performances. Note: 1. Panditji Update: We are pleased to inform that our long wait of panditji has come to an end and starting Sunday January 17th mandir will have panditji stationed locally. 2. Up-Coming Events: Bhajan Sandhya by bhajan mandli from Toronto on Sunday Feb 14th 3pm to 6pm. For more information and event update visit www.brantfordhindutemple.com
Happy New Year Everyone .. We are proud to announce start of Baal Sanskar Shalla at Brantford Mandir on every Wednesday from 6pm to 8pm.. We have trial class for about 3 weeks now and we ready to open for everyone in community… For Baal Sanskar Shalla, we accepting students age of 5 years and above … Goal of Baal Sanskar Shaala is to learn Hindi language, understand values of Hindu culture, explain Hindu ritual in Logical way and reason for performing different rituals in Hindu culture, importance of our festival.., Yoga/meditation, Mantra, Stories etc.. Teachers for Baal Sanskar Shaala are Vandana Sharma and Rakesh Sharma. Vandana Sharma is teacher at school in Hamilton Rakesh Sharma teaches computer science at Mohawk College in Hamilton. Also, Rakesh Sharma earned degree in Hindu rituals from Gayatri Pragna Peeth, Haridwar.. For any information regarding Baal Sanskar Shaala contact: Roopa Handa : 519 771 4749 Sonal Patel : 226 388 2728 Priti Shah : 519 774 6462 Baal Sanskar Shalla: At Brantford Mandir: 13 Edward St, Brantford, ON N3S 1V2, Phone: (226) 227-6296 On every Wednesday from 6pm to 8pm..
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परमात्मा प्राप्ति किसे होती हॆ ? एक सुन्दर कहानी है:---- एक राजा था।वह बहुत न्याय प्रिय तथा प्रजा वत्सल एवं धार्मिक स्वभाव का था। वह नित्य अपने इष्ट देव की बडी श्रद्धा से पूजा-पाठ और याद करता था। एक दिन इष्ट देव ने प्रसन्न होकर उसे दर्शन दिये तथा कहा---"राजन् मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हैं। बोलो तुम्हारी कोई इछा हॆ?" प्रजा को चाहने वाला राजा बोला---"भगवन् मेरे पास आपका दिया सब कुछ हॆ।आपकी कृपा से राज्य मे सब प्रकार सुख-शान्ति हॆ। फिर भी मेरी एक ईच्छा हॆ कि जैसे आपने मुझे दर्शन देकर धन्य किया, वैसे ही मेरी सारी प्रजा को भी दर्शन दीजिये।" "यह तो सम्भव नहीं है ।" ---भगवान ने राजा को समझाया ।परन्तु प्रजा को चाहने वाला राजा भगवान् से जिद्द् करने लगा। आखिर भगवान को अपने साधक के सामने झुकना पडा ओर वे बोले,--"ठीक है, कल अपनी सारी प्रजा को उस पहाडी के पास लाना। मैं पहाडी के ऊपर से दर्शन दूँगा।" राजा अत्यन्त प्रसन्न. हुअा और भगवान को धन्यवाद दिया। अगले दिन सारे नगर मे ढिंढोरा पिटवा दिया कि कल सभी पहाड के नीचे मेरे साथ पहुँचे,वहाँ भगवान् आप सबको दर्शन देगें। दूसरे दिन राजा अपने समस्त प्रजा और स्वजनों को साथ लेकर पहाडी की ओर चलने लगा। चलते-चलते रास्ते मे एक स्थान पर तांबे कि सिक्कों का पहाड देखा। प्रजा में से कुछ एक उस ओर भागने लगे।तभी ज्ञानी राजा ने सबको सर्तक किया कि कोई उस ओर ध्यान न दे,क्योकि तुम सब भगवान से मिलने जा रहे हो,इन तांबे के सिक्कों के पीछे अपने भाग्य को लात मत मारो। परन्तु लोभ-लालच मे वशीभूत कुछ एक प्रजा तांबे कि सिक्कों वाली पहाडी की ओर भाग गयी और सिक्कों कि गठरी बनाकर अपने घर कि ओर चलने लगे। वे मन ही मन सोच रहे थे,पहले ये सिक्कों को समेट ले, भगवान से तो फिर कभी मिल लेगे। राजा खिन्न मन से आगे बढे। कुछ दूर चलने पर चांदी कि सिक्कों का चमचमाता पहाड दिखाई दिया।इस वार भी बचे हुये प्रजा में से कुछ लोग, उस ओर भागने लगे ओर चांदी के सिक्कों को गठरी बनाकर अपनी घर की ओर चलने लगे।उनके मन मे विचार चल रहा था कि,ऐसा मौका बार-बार नहीं मिलता है । चांदी के इतने सारे सिक्के फिर मिले न मिले, भगवान तो फिर कभी मिल जायेगें इसी प्रकार कुछ दूर और चलने पर सोने के सिक्कों का पहाड नजर आया।अब तो प्रजाजनो में बचे हुये सारे लोग तथा राजा के स्वजन भी उस ओर भागने लगे। वे भी दूसरों की तरह सिक्कों कि गठरी लाद कर अपने-अपने घरों की ओर चल दिये। अब केवल राजा ओर रानी ही शेष रह गये थे।राजा रानी से कहने लगे---"देखो कितने लोभी ये लोग। भगवान से मिलने का महत्व ही नहीं जानते हॆ। भगवान के सामने सारी दुनियां कि दौलत क्या चीज हॆ?" सही बात है--रानी ने राजा कि बात का समर्थन किया और वह आगे बढने लगे। कुछ दुर चलने पर राजा ओर रानी ने देखा कि सप्तरंगि आभा बिखरता हीरों का पहाड हॆ।अब तो रानी से रहा नहीं गया,हीरों के आर्कषण से वह भी दौड पडी,और हीरों कि गठरी बनाने लगी ।फिर भी उसका मन नहीं भरा तो साड़ी के पल्लू मेँ भी बांधने लगी । वजन के कारण रानी के वस्त्र देह से अलग हो गये,परंतु हीरों का तृष्णा अभी भी नहीं मिटी।यह देख राजा को अत्यन्त ग्लानि ओर विरक्ति हुई।बड़े दुःखद मन से राजा अकेले ही आगे बढते गये। वहाँ सचमुच भगवान खडे उसका इन्तजार कर रहे थे।राजा को देखते ही भगवान मुसकुराये ओर पुछा --"कहाँ है तुम्हारी प्रजा और तुम्हारे प्रियजन। मैं तो कब से उनसे मिलने के लिये बेकरारी से उनका इन्तजार कर रहा हूॅ।" राजा ने शर्म और आत्म-ग्लानि से अपना सर झुका दिया।तब भगवान ने राजा को समझाया-- "राजन जो लोग भौतिक सांसारिक प्राप्ति को मुझसे अधिक मानते हॆ, उन्हें कदाचित मेरी प्राप्ति नहीं होती ओर वह मेरे स्नेह तथा आर्शिवाद से भी वंचित रह जाते हॆ।" सार...... जो आत्मायें अपनी मन ओर बुद्धि से भगवान पर कुर्बान जाते हैं, और सर्वसम्बधों से प्यार करते है...........वह भगवान के प्रिय बनते हैं।
Mandir is open till midnight today.please visit with your friends and family.